Compositions written by IIHSKUK Literary Club's Active Members (Part I)
नाम - हिमांशु टांक
बी.ए.(द्वितीय सेमेस्टर)अनुक्रमांक -22006
Following are his 5 Ghazals, 5 Nazms, 2 Qita and 2 Dohe
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***************ग़ज़लें********
ग़ज़ल 1
1. अव्वल नाता जोड़ो हिंदी में,
पहले गिनती सीखो हिंदी में।
2.गहरा तम* बिखरा है देहरी पर,
तुम इक दीप जला लो हिंदी में।
*तम (अँधेरा)
3. मैं उर्दू में ग़ज़लें कहता हूं,
तुम इक गीत तो गा दो हिंदी में।
4.उर्दू में कहन* की मुश्किल है तो,
कहना है जो कह दो हिंदी में।
*कहन (कहने की,बोलने की)
5.भाषा के सीमा से वाक़िफ़ हूं,
खुल कर दिल को खोलो हिंदी में।
***************ग़ज़ल 2*************
1.न तितली ही फटकती है न भौंरे ही फटकते हैं,
सुख़न* के बाग़ में फिर भी ग़ज़ल के गुल महकते हैं।
*सुखन (काव्य)
2.जहां* की सारी मंज़िल भूल के सफ़र शुरू होगा,
नहीं पामाल* रस्ते जो मिरे दिल तक पहुंचते हैं।
*जहां (दुनिया)
*पामाल (Downtrodden)
3. तअल्लुक* गुण मिलाए से तो मंज़िल पा नहीं जाते,
अधूरापन लिए भी दोस्ती की राह चलते हैं।
* तअल्लुक (रिश्ता, ताल्लुक)
4. यकीं होता नहीं के दास्तां हो गई मुकम्मल* अब,
भरम क़ायम है के हर मोड़ पर रस्ते बदलते हैं।
*मुकम्मल(पूरी, ख़त्म)
5. मिरी माँ बैठकर जब भी सुनाती आपबीती तब,
मिरे अंदर बने कुछ बुत* हैं शीशे से तिड़कते हैं।
*बुत (मूर्ति,false ideals)
***************ग़ज़ल 3*************
1. मैं जानता हूं कि ये सब ख़ा-म-ख़ा है,
चिंता मगर दिल में गहरी जा-ब-जा* है।
*जा-ब-जा (जगह जगह)
2.रात को वही करवटों के सिलसिले हैं,
ये साल भी कौन सा मुझको नया है।
3.अब क्यों लगे सबको अपनी धरती बंजर,
परदेस को जाता जो हर क़ाफ़िला है।
4.दुनिया में उस शख़्स से ही पाई कुरबत*,
जिस शख़्स से दुनिया भर का फ़ासला है।
*कुरबत (नज़दीकी)
5.मां बाप की नींद उड़ गई रूठ कर के,
शहज़ादा जो रूठ कर के सो गया है।
6.अच्छा हुआ बात मेरी गौर ना की,
सुनकर मिरी बात बदले फ़ैसला है।
***************ग़ज़ल 4*************
1.सियासत की रवायत* है ये सदियों की कहानी है,
हमारी दर्दमंदी में तुम्हारी बाग़बानी है।
*रवायत (Tradition)
2.दवा वालों तुम्हारी क्या है मंशा मैं समझता हूं,
तुम्हें अपनी दवाओं की हमें आदत लगानी है।
3.ये कैसे मोड़ पर है इश्क़ हिज्र* ए यार में खुश हूं,
कि टूटे साज़ जैसा हूं मगर सुर की रवानी है।
*हिज्र (वियोग, जुदाई)
*साज़ (musical instrument)
4.न जाने कौन है लिखता न जाने कौन लिखवाता,
क़लम की नोंक पर से बात जो उतरे सियानी है।
5.हमें तो लाख चिंता है तुम्हारे दूर जाने की,
कभी तुम भी कहो तुमको हमीं पे जां लिटानी है।
6.है कितना बात को कहना हमारे अहद* में मुश्किल,
हुनर से बात कह कर फिर हमें दुनिया लुभानी है।
*अहद (समय, दौर, phase, age)
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##############नज़्में#########
1. इम्तिहान
मुझे तुम इम्तिहान के वक्त
कुछ ज्यादा याद आती हो।
अब इस "कुछ" में कितना कुछ है?
पता नहीं।
इस "ज़्यादा" में भी क्या गुंजाइश है बाक़ी?
इसकी भी मुझे नहीं ख़बर।
मगर इम्तिहान की घड़ियां
हौसलों को परखती हैं।
हौसलों को "साथ" की ज़रूरत होती है।
और
तुम्हारे साथ का substitute मुझे मिलता ही नहीं।
मिरा रखा हर क़दम मिरा इम्तिहान है,
तुम्हारा मेरे पास ना होने का।
मुझे तुम कुछ इस क़दर याद आती हो
हर इम्तिहान में।
2. वक्त की बरबादी
कभी कुछ अच्छा पढ़ते,
कुछ लिखते ,
कोई नग्मा सुनते ,
या उससे बात करते ,
जब तुम्हारा मन लग जाए ,
जब कई सदियां एक साथ
ज़बान पर घुलने लगे,
एक धुंधलके के परे
खुदा की छाया दिखने लगे ,
तुम्हें लगे कि तुम मुक्ति के मार्ग पर हो
कभी वक्त न देखना ;
बार बार वक्त देखना
वक्त की बरबादी है।
ये चौकन्नापन
ये व्यवस्थित ढंग
तुम भी जानते हो
प्रेम को खा जाता है।
हर बार तुम्हें खाई में धकेल देता है,
जहां से तुम उस तारे को
देख तो सकते हो
छू नहीं सकते।
3. देख लेने दो
देख लेने दो कि तुम हो,
देख लेने दो कि मैं हूं।
देख लेने दो जहां को,
मैं तुम्हारे पास हूं,
तुम हो मेरे पास जानां
इसकी नज़रों में भी आए,
कि हम दोनों 'साथ' है।
4. राज़दां* तेरे रहते
* (a person to whom you reveal your secrets)
राज़दा तेरे रहते
मेरे लफ़्ज़ थे,
मेरी बात थीं।
मेरे कहन को था इनायत
तेरे ज़हन का सब्र जब
बेशक
बिन बहर की थी शायरी
आवारा जुमलों से लिपटी नज़्म थी।
फिर भी
हर राह में मजाहिया मोड़ था।
दिल बेधड़क धड़कता था।
अपनी डायरी के पन्ने उलटते
इन दिनों ये समझ आया
कि जिनके पास नहीं रहते राज़दा
उन्हें मजबूरन करना पड़ता है भरोसा
इन्हीं डायरी के पन्नों पर।
सिसकियां पाती है पनाह इन्हीं पन्नों पर,
ज़िंदगी के आंसू सिमट जाते हैं
बहुत सी बातें रह जाती है बिन लिखी।
खुल कर दिल नहीं खुलता किसी पे।
हाथ रुकने लगते हैं लिखते हुए,
रगों में डर मचलने लगता है,
कि कोई पढ़ न ले ये डायरी,
ये सामां कहीं बिखर न जाए
जो मैंने इक बंजारे सा
बांध रखा है।
राजदा तेरे रहते
मेरे लफ्ज़ थे
मेरी बात थीं।
5. तुम्हारा फ़िकरा
तुम एक फ़िकरा* बोलोगी,
तो फ़लसफ़ा हो जाएगा।
मैं लाख बातें बोलूंगा,
Logic के मिल जाने तक।
*फ़िकरा (quote)
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कभी कुछ अच्छा पढ़ते,
कुछ लिखते ,
कोई नग्मा सुनते ,
या उससे बात करते ,
जब तुम्हारा मन लग जाए ,
जब कई सदियां एक साथ
ज़बान पर घुलने लगे,
एक धुंधलके के परे
खुदा की छाया दिखने लगे ,
तुम्हें लगे कि तुम मुक्ति के मार्ग पर हो
कभी वक्त न देखना ;
बार बार वक्त देखना
वक्त की बरबादी है।
ये चौकन्नापन
ये व्यवस्थित ढंग
तुम भी जानते हो
प्रेम को खा जाता है।
हर बार तुम्हें खाई में धकेल देता है,
जहां से तुम उस तारे को
देख तो सकते हो
छू नहीं सकते।
3. देख लेने दो
देख लेने दो कि तुम हो,
देख लेने दो कि मैं हूं।
देख लेने दो जहां को,
मैं तुम्हारे पास हूं,
तुम हो मेरे पास जानां
इसकी नज़रों में भी आए,
कि हम दोनों 'साथ' है।
4. राज़दां* तेरे रहते
* (a person to whom you reveal your secrets)
राज़दा तेरे रहते
मेरे लफ़्ज़ थे,
मेरी बात थीं।
मेरे कहन को था इनायत
तेरे ज़हन का सब्र जब
बेशक
बिन बहर की थी शायरी
आवारा जुमलों से लिपटी नज़्म थी।
फिर भी
हर राह में मजाहिया मोड़ था।
दिल बेधड़क धड़कता था।
अपनी डायरी के पन्ने उलटते
इन दिनों ये समझ आया
कि जिनके पास नहीं रहते राज़दा
उन्हें मजबूरन करना पड़ता है भरोसा
इन्हीं डायरी के पन्नों पर।
सिसकियां पाती है पनाह इन्हीं पन्नों पर,
ज़िंदगी के आंसू सिमट जाते हैं
बहुत सी बातें रह जाती है बिन लिखी।
खुल कर दिल नहीं खुलता किसी पे।
हाथ रुकने लगते हैं लिखते हुए,
रगों में डर मचलने लगता है,
कि कोई पढ़ न ले ये डायरी,
ये सामां कहीं बिखर न जाए
जो मैंने इक बंजारे सा
बांध रखा है।
राजदा तेरे रहते
मेरे लफ्ज़ थे
मेरी बात थीं।
5. तुम्हारा फ़िकरा
तुम एक फ़िकरा* बोलोगी,
तो फ़लसफ़ा हो जाएगा।
मैं लाख बातें बोलूंगा,
Logic के मिल जाने तक।
*फ़िकरा (quote)
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#############कितआ############
1. मनाज़िर* इस क़दर भी ज़िंदगी से रूठ जाते हैं,
कि फिर ख़्वाबों के नाते आँख तक से टूट जाते हैं।
ये जीवन नोटबुक सा है मुसलसल* ही लिखो वरना,
जो पन्ने छूट जाते है वो पन्ने छूट जाते हैं।
* मनाज़िर (मंज़र का बहुवचन, कई दृश्य)
* मुसलसल (लगातार ,consistently)
2.बुतों की कर इबादत दीन* को देते दिलासा सब,
किताबों की इबादत कर किताबें कौन पढ़ता है,
सभी रहबर* शहर के चौंक से रस्ता दिखाते हैं,
मगर उनके दिखाए रास्ते पर कौन चलता है।
*दीन (faith, ज़मीर)
*रहबर (पथप्रदर्शक,राह दिखाना वाला)
______________________________ _______________________
#############दोहे############# #
1.नींद सिरहाने रखी,करवट करवट आस,
शब ताक धर शमा करे,पिया मिलन अरदास।
2.साजन मेरी आंख को,यूं तेरा दीदार,
जैसे तपते माथ* को,चूमे है पछवार*।
*माथ (माथा,मस्तक)
*पछवार (पछवाड़,बारिश की फुहार)
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1. मनाज़िर* इस क़दर भी ज़िंदगी से रूठ जाते हैं,
कि फिर ख़्वाबों के नाते आँख तक से टूट जाते हैं।
ये जीवन नोटबुक सा है मुसलसल* ही लिखो वरना,
जो पन्ने छूट जाते है वो पन्ने छूट जाते हैं।
* मनाज़िर (मंज़र का बहुवचन, कई दृश्य)
* मुसलसल (लगातार ,consistently)
2.बुतों की कर इबादत दीन* को देते दिलासा सब,
किताबों की इबादत कर किताबें कौन पढ़ता है,
सभी रहबर* शहर के चौंक से रस्ता दिखाते हैं,
मगर उनके दिखाए रास्ते पर कौन चलता है।
*दीन (faith, ज़मीर)
*रहबर (पथप्रदर्शक,राह दिखाना वाला)
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#############दोहे#############
1.नींद सिरहाने रखी,करवट करवट आस,
शब ताक धर शमा करे,पिया मिलन अरदास।
2.साजन मेरी आंख को,यूं तेरा दीदार,
जैसे तपते माथ* को,चूमे है पछवार*।
*माथ (माथा,मस्तक)
*पछवार (पछवाड़,बारिश की फुहार)
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